हमारी शक्ति का स्रोत [संस्कृत श्लोक- (5)]

जब हम दुनियादारी की स्वार्थ वृति से टूट जाए, तब हमें यह श्लोक निस्वार्थ वृति को फैलाने की शक्ति देता है। हमें कभी अकेला महसूस नहीं होने देगा, गर विश्वास है तो ईश्वर हमारे साथ ही है क्योंकि वह हमारे भीतर ही है, हमें ही भीतर देखना है।

यह श्लोक का अर्थ हम सभी को पता है, पर क्या गहराई में महसूस किया है? गर गहराई से महसूस किया होता तो कभी खुद को अकेले नहीं पाते। अक्सर एसा होता है कि जब अपने कहलाते लोगों से हमारा दिल टूटता है, धोखा मिलता है, हमारे साथ भेदभाव होता है तो हम जीवन में निराश होकर अकेलापन महसूस करते है, रिश्तों पर से हमारा भरोसा टूट जाता है, तभी यह श्लोक हमारी शक्ति और हमारी प्रेरणा बन सकता है।

श्लोक:

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविड़म त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम् देव देव ||

अर्थात्:

हे देव, आप ही मेरी माता हो, आप ही मेरे पिता हो, आप ही सगे-संबंधी या भाई हो, आप ही मित्र हो।

आप ही विधा हो, आप ही धन (समृद्धि) हो, मेरा सबकुछ आप ही हो।

अन्य संस्कृत श्लोक:

संस्कृत श्लोक अर्थ सहित- (1) / Sanskrit quotes with meaning

संस्कृत श्लोक अर्थ सहित- (2) / SANSKRIT QUOTES WITH MEANING

#संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (3) #एकमत होना # विवाद से मुक्त #कर्तव्य पालन

#संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (4) #नवरात्रि #दुर्गा #सिद्धीदात्री

Leave a Reply

Up ↑

%d bloggers like this: