प्रथमेनार्जिता विद्या
द्वितीयेनार्जितं धनं।
तृतीयेनार्जितः कीर्तिः (पुण्य कमाना)
चतुर्थे किं करिष्यति।।
भावार्थ:
जिसने भी प्रथम आश्रम (ब्रह्मचर्य) में विद्या अर्जित नहीं की है, द्वितीय आश्रम (गृहस्थ) में धन अर्जित नहीं किया है, तृतीय आश्रम (वानप्रस्थ) में कीर्ति अर्जित नहीं की है (पुण्य नहीं कमाया), वह चतुर्थ आश्रम (संन्यास) में क्या करेगा?
सनातन धर्म में कर्त्तव्य पालन के लिए चार आश्रम दिये गये है, जिससे व्यक्ति को जीवन जीने के लिए लक्ष्य मिल सके।
- ब्रह्मचर्य
- गृहस्थ
- वानप्रस्थ
- संन्यास
1. ब्रह्मचर्य – 25 वर्ष तक की आयु, विधा प्राप्ति करके जीवन को खुद के बलबूते पर चलाने के लिए तैयार हो जाना है।
2. गृहस्थ – 25 से 50 वर्ष तक की आयु, विवाह करके पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निभाना है।
3. वानप्रस्थ- 50 से 75 वर्ष तक की आयु, पारिवारिक जिम्मेदारियों से निवृत्त हो जाना है और बहु-बेटे को सारी जिम्मेदारी दे देनी है, बच्चे बड़े हो जाने से धीरे धीरे सारी इच्छाओं को वश में करना शुरू कर देना है, सेवा और भक्ति में समय बिताना है।
4. संन्यास- 75 वर्ष की आयु के बाद का जीवन, सांसारिक दुनिया से बिलकुल मुक्त रहना है, त्यागी या तपस्वी के जैसे जीवन व्यतीत करना है, सिर्फ भक्ति भाव में ही समय बिताना है।
Reading this after a long time since my school days.
It’s a great rule for a disciplined living in society.
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Yes..so true..it is a very nice rule for discipline and for smoothly work done in society.
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👍
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Reblogged this on B +Ve !!.
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अगर हम अपने हर कर्मों को ईश्वर को समर्पित कर दे तो यह ज़िंदगी जीते जी मोक्ष का द्वार हो जाएगा। बहुत ही अच्छे तरीके से आपने सनातन संस्कृति को लिखा है दीदी💕😊
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सही कहा। कर्म ही सबकुछ है।
पोस्ट पसंद करने के लिए बहुत ही धन्यवाद 😊
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