मैं तो उन पर बलिहार गई!

परमात्मा से प्रीति होना, उनमें ही खो जाना और जीवन जीना – यही सार है, इस ख़ूबसूरत कविता का।
यह कविता प्रेम रस और भक्ति रस से ओतप्रोत है।

मैंने जब यह रचना पढ़ी, मुझे बेहद ख़ूबसूरत लगी, जो मैं आप सबके साथ साझा करना चाहती हूँ।

कविता:

वेणी में तारक-फूल गूंथ,
निशि ने मेरा शृंगार किया;
राका-शशि ने बन शीश फूल,
छवि का मोहक संसार दिया;
उषा उनकी पद-लाली से,
हंस मेरी मांग संवार गई!
मैं तो उन पर बलिहार गई!

बिन मांगे प्यार-दुलार दिया,
सम्मान और सत्कार दिया;
रह गई मुक्ति करबद्ध खड़ी,
मैंने बंधन स्वीकार किया;
वे हार-हार कर जीत गए,
मैं जीत-जीतकर हार गई!
मैं तो उन पर बलिहार गई!

उनकी छाया में पली सदा,
उनके पीछे ही चली सदा;
उनके ही जीवन-मंदिर में,
मैं मोम-दीप-सी जली सदा;
मैं उनको पा जग भूल गई,
अपने को स्वयं बिसार गई!
मैं तो उन पर बलिहार गई!

कब चाहा प्यार-दुलार मिले,
फूलों का मृदु गलहार मिले;
पूजा-अर्चन ही ध्येय रहा,
बस पूजा का अधिकार मिले;
उनके श्री चरणों पर हंसकर,
मैं तन-मन सब-कुछ वार गई!
मैं तो उन पर बलिहार गई!

कहां खोजने जा रहे हो परमात्मा को?
बलिहार होना है तो इसी क्षण हो जाओ, क्योंकि परमात्मा हर जगह मौजूद हैं। बहार मत खोजो उनको, तुम्हारे भीतर झांको, परमात्मा वही है।

Source: Saheje rahiba- osho

Author: Harina Pandya

I am Harina Pandya, with a bundle of enthusiasm, positive thinking and creativity. I am a poet and a blogger. I am passionate about writing since childhood, expressing myself through writing in three different languages namely Gujarati, Hindi and English. I love to share on different topics in a poetry form, article form and as an illustrator form as well.

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