संस्कृत गीत का हिंदी में भाषांतर भी दिया हुआ है।
गीत के रचनाकार स्व. पद्मश्री डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर जी है।
गीत:
मनसा सततं स्मरणीयम्
वचसा सततं वदनीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ॥ लोकहितं॥
न भोगभवने रमणीयम्
न च सुखशयने शयनीयनम्
अहर्निशं जागरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा॥
न जातु दु:खं गणनीयम्
न च निजसौख्यं मननीयम्
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा॥
दु:खसागरे तरणीयम्
कष्टपर्वते चरणीयम्
विपत्तिविपिने भ्रमणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा॥
गहनारण्ये घनान्धकारे
बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे
तत्रा मया संचरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ॥ मनसा॥
हिंदी में भाषांतर:
हमें हमेशा स्मरण रहे,
हम हमेशा अपनी वाणी से बोलते रहे,
कि हमारा कर्तव्य लोगों का हित करना है और मानवता के प्रति है।
हम भौतिक सुखों पर ध्यान केंद्रित न करें
न ही भोग विलास की गोद में बैठे रहें,
हमें हमेशा जागृत रहना है,
कि हमारा कर्तव्य लोगों का हित करना है और मानवता के प्रति है।
हम अपने दुखों पर ही ध्यान न दे,
न ही लगातार हमारी खुशीयों पर ध्यान दे,
हमें अपने कर्तव्य पालन के लिए कदम उठाने चाहिए,
हमारा कर्तव्य लोगों का हित करना है और मानवता के प्रति है।
हम दुःख के महासागरों को पार कर ले,
हम कठिनाई के पहाड़ों को माप ले,
विपत्तियों से गुजरते हुए भी,
हमारा कर्तव्य लोगों का हित करना है और मानवता के प्रति है।
घनघोर अंधकार में घिरे हुए हो,
या मित्रो और परिजनों के द्वारा दिये गये दुःख से घिरे हुए हो,
जब कभी हम एसे रास्तों पर होते है,
तब भी हमारा कर्तव्य लोगों का हित करना है और मानवता के प्रति है।

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