1) बदलते हुए सिर्फ़ मौसम ही अच्छे लगते है,
इंसान नहीं।
2) हवा का रुख़ कभी भी बदल जाता है,
पर रिश्तों का रुख़ बदल जाए, वो अच्छा नहीं लगता।
3) कुछ चीजें बांटने से बढ़ती है और कुछ बांटने से कम होती है, जैसे कि,
ज़ख्म बांटने से कम होता है,
खुशी बांटने से बढ़ती है।
और ज्ञान भी बांटने से बढ़ता है।
4 responses to “कुछ बातें, यूँ ही..!(2) #बदलते इंसान #रिश्ते”
100% sahi batein…
😊😊
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