अल्लाह की इबादत होती है,
भगवान की प्रार्थना होती है।
शब्द अलग-अलग हैं,
पर अर्थ समान है।
तो शब्दों की भिन्नता,
शब्दों तक ही सीमित ना रहकर,
क्यों भावनाओं तक पहुंच गई है?
अल्लाह की इबादत होती है,
भगवान की प्रार्थना होती है।
शब्द अलग-अलग हैं,
पर अर्थ समान है।
तो शब्दों की भिन्नता,
शब्दों तक ही सीमित ना रहकर,
क्यों भावनाओं तक पहुंच गई है?
बहुत ही सही लिखा है आपने | एक कड़वा सच है यह |
शब्दों की भिन्नता यूँही नहीं पहुँची भावनाओं तक, पहुंचाई गयी है राजनीति और धर्म के ठेकेदारों द्वारा | हम आम लोग बिना सोचे समझें उनका अनुसरण करे रहते हैं |
समय मिले तो इस लिंक पर जाएँ, ऐसा ही कुछ लिखने का मेरा प्रयास था |
https://rkkblog1951.wordpress.com/2018/09/12/geeta-n-quran/
Hello, I checked the link, but I cannot open it..even I tried to search this blog on your home page..but sorry couldn’t find it..
Can you please send me again the link? I would love to read it..
बिलकुल सच कहा, माहौल अब बहुत ही बिगड़ गया है।
रहने दिजीए,मैने ढूंढ लिया।😊
बहोतख़ूब बहना 👌
😊🌻
👍🏼