ગુરુ પૂર્ણિમા નિમિત્તે વિશેષ ગઝલ (गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विशेष ग़ज़ल)

ગુરુ અને શ્રદ્ધા નો મહિમા દર્શાવતી ગઝલ: આધ્યાત્મિક ગઝલ

જ્યારથી શ્રદ્ધાની કૂંપળ ફુટી અંતરમાં જાણે!
ત્યારથી જિંદગીની ડાળી પર કળી ખીલી ઉઠી જાણે!

જ્યારથી આધ્યાત્મિક પ્રગતિનો સૂર્યોદય થયો,
ત્યારથી શંકા- ગૂંચવણના વાદળ હટી ગયા જાણે!

જ્યારથી ગુરુનું શરણ પામી લીધું,
ત્યારથી ચિંતા આપમેળે જ છુટી ગઈ જાણે!

દ્રઢ વિશ્વાસ જો ખુદ પર હોય,
દરેક કાર્ય સરળ થઈ જાય જાણે!

પૂર્ણ શ્રધ્ધા જો ગુરુ પર હોય,
જીવન નૌકા ડૂબે નહીં જાણે!

हिंदी में ग़ज़ल:

गुरु और श्रद्धा की महिमा दर्शाती हुई ग़ज़ल:आध्यात्मिक ग़ज़ल

जब से श्रद्धा की कोंपल भीतर में उगी है,
तब से ज़िदगी की कली खिल उठी है।

जब से आध्यात्मिक प्रगति का सुर्योदय हुआ,
तब से शंका- उलजनों के बादल चले गये है।

जब से गुरु की शरण मिल गई,
तब से चिंता अपनेआप चली गई है।

अगर दृढ़ विश्वास खुद पर हो,
हर कार्य आसान हो जाता है।

अगर पूर्ण श्रध्धा गुरु पर हो,
जीवन नौका डूबती नहीं है।

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ગુરુ એ જ આધાર

प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
भावार्थ :
प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है ।

मैंने इस स्तोत्र से प्रेरणा लेकर एक रचना लिखी है। रचना में मैंने कहा है कि हम कैसे अपने बुरे दौर में भी सकारात्मक और गतिशील रह सकते हैं और कुछ लोगों से मिले बुरे अनुभव को भी एक आकार दे सकते हैं। जैसे कि स्तोत्र में कहा है कि हर कोई गुरु समान है, जिससे हमने कुछ सीखा है।

रचना: नया नज़रिया!

मुझे रास्ते से भटकाने के लिए,
तुमने मेरा रास्ता, कांटों से भर दिया।
पर मैंने तो कांटों पर
चलना सीख लिया।

मुझे परेशान करने के लिए,
तुमने मेरे साथ, बुरा बर्ताव किया।
पर मैंने तो धैर्य और सहनशीलता का
गुण सीख लिया।

मुझे विफल करने के लिए,
तुमने योजनाएं बनाना शुरू किया।
पर मैंने तो मेरा मनोबल और इरादा
दोनों को ओर मज़बूत करना सीख लिया।

मैंने एक कला सीख ली,
रास्ते के पत्थर को सफलता की सीढ़ी
बनाने की कला सीख ली,
उस के लिये तेरा शुक्रिया करना चाहूंगी।

यह “तू” कोई व्यक्ति हो सकता है, बुरा समय या तो कोई परिस्थिति भी हो सकती हैं। हम सब को एसे अनुभव से पसार होना ही पड़ता है, पर देखा जाए तो एसी जटिल परिस्थितियां ही हमें बेहतर इंसान बनाती है, हमें सफल बनाती है, पर यह तभी हो सकता है जब हम हार को स्वीकार कर बैठें न रहें और अपना मनोबल तूटने न दें, अपने कार्य को छोड़ न दें।

हमें हमेशा एसी परिस्थिति या तो व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता की भावना रखनी चाहिेए क्योंकि ये गुरु समान ही है, जिसने हमें सीखाया, जिनसे हमें कुछ सीखने की प्रेरणा मिली।

गुरु का महत्व- संस्कृत श्लोक (पहला भाग)

(1)
गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते ।
अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥

 भावार्थ :

‘गु’कार याने अंधकार, और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।

(2)
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च ।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्।।

 भावार्थ :

बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।

मैंने आज के शुभ अवसर पर गुरु पूर्णिमा के लिए तीन भाग लिखे हैं। पहले भाग में, मैंने संस्कृत श्लोकों के माध्यम से गुरु का महत्व दर्शाया है।

दूसरे भाग में, मैंने गुरु के बारे में एक अलग दृष्टिकोण का उल्लेख किया है।

तीसरे भाग में, मैंने भगवान दत्तात्रेय के २४ गुरुओं के बारे में जानकारी दी है।

मुझे उम्मीद है कि आप सभी को ये लेख पसंद आएंगे।

शुभ गुरु पूर्णिमा!🙏