#quotes #भक्ति #भक्ति का उद्देश्य

भक्ति का उद्देश्य कामना पूर्ति नहीं है पर कामनाओं का नाश है। कामना पूरी हो तो हम यह करेंगे यह तो व्यापार हो गया, जैसे कि कोई service का charge दे रहे है। भक्ति का मूल उद्देश्य जीवन में शिवत्व की प्राप्ति है, जीव का शिव से मिलन है, आध्यात्मिक प्रगति तभी होती है, जब... Continue Reading →

#श्री कृष्ण श्लोक #माधव #Shri Krishna shloka #Madhav

मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिं।यत्कृपा तमहं वन्दे परमानंद माधवम्।। भावार्थ: श्री कृष्ण की कृपा से जो गूंगे होते है वो भी बोलने लगते हैं, जो लंगड़े होते है वो पहाड़ों को भी पार कर लेते हैं। उन परम आनंद स्वरूप माधव की मैं वंदना करती हूं। Translation in English: Mukam karoti vaacaalam pangum langayate... Continue Reading →

नैवेद्य मंत्र अर्थ सहित (1) (कृष्ण भगवान को भोग लगाने का मंत्र)

त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर।। अर्थात् हे गोविन्द, आपका ही सब दिया हुआ है, जो आपको ही समर्पित कर रहे हैं,हे परमेश्वर, आपके मुख के सामने जो भी है, उसे प्रसन्नता से ग्रहण करें। अन्य संस्कृत ब्लॉग: उपनिषद वचन #संस्कृत #योग / SANSKRIT QUOTES WITH MEANING (3) अच्छे स्वास्थ्य के लिए... Continue Reading →

मधुराष्टकम् (अर्थ सहित)

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥१॥ वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम् ।चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥२॥ वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥३॥ गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥४॥ करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥५॥ गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥६॥ गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥७॥ गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥८॥ भावार्थ: (हे कृष्ण!) आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है, आपकी आंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है, आपका हृदय मधुर है, आपका जाना भी मधुर है, मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ।।1।। आपका बोलना मधुर है, आपका चरित्र मधुर हैं,... Continue Reading →

कृष्ण रस

उपनिषद में रस के बारे में कहा गया है, रसो वै स:।अर्थात्वह परमात्म तत्व रस स्वरूप है। कृष्ण यानी प्रेम, आनंद और शृंगार रस से ओतप्रोत।कृष्ण यानी अनंत आनंद स्वरूप।कृष्ण रस से अद्भुत रस कोई भी नहीं है। कृष्ण के नाम और अर्थ: कृष्ण -  सबको अपनी और आकर्षित करने वाला।मोहन - सम्मोहित करने वाला।मनोहर... Continue Reading →

भक्ति रस पर कुछ पंक्तियां

हे कान्हा,तेरी भक्ति में ओतप्रोत हो गई हूं। एसा मन होता हैकि मेरे नयनों से,तेरे मनमोहक रूप को निहारती रहूं। एसा मन होता हैकि मेरे कानों से,तेरी बांसुरी की धुन सुनती रहूं। एसा मन होता हैकि मेरी वाणी से,तेरी लीला के बारे में बोलती रहूं। हे मुरलीधर, बस यही प्रार्थना हैकि तेरी भक्ति करने से,... Continue Reading →

दुर्गा माता के नव स्वरूप (तीसरा स्वरूप) (सुंदरता और निर्भयता का स्वरूप)

दुर्गा माता का यह स्वरूप सुंदरता का स्वरूप और निर्भयता का स्वरूप है। माता के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है, इसलिए इनको चंद्रघंटा कहा जाता है। चंद्र को सुंदरता प्रतीक कहा जाता है और दुर्गा माता का यह रूप सोना जैसे एकदम चमकीला होता है वैसा ही चमकीला है, इसलिए यह... Continue Reading →

महा मृत्युंजय मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ मंत्र का अर्थ:- ॐ- यह ईश्वर का वाचक है, परब्रह्म का प्रतिक है। हम त्रि- नेत्र वाले (तीन आंखें) शिवजी का पूजन करते है, जो पवित्र सुगंध धारण करते है, हमे पोषित करते है (स्वास्थ्य, सुख और संपत्ति में वृद्धि करते है), जो हमारा पोषण करके... Continue Reading →

Up ↑