आँख लग गई मेरी निंदिया में,
नींद दे गई निंदिया रानी,
और दे गई एक प्यारा सपना।
सपने में देखा मैंने,
एक खुशहाल ज़िंदगी है,
हंसता खेलता एक परिवार है,
प्यार सम्मान के तोहफें हैं,
विश्वास की एक डोर है।
फिर अचानक आवाज़ आई कुछ,
और उड गई नींद,
तूट गया सपना और दिखाई पडी हक़ीक़त!
अपने ही हमसे दुरियां बनाते हैं,
साज़िशों के खेल रचते हैं,
मन के अरमानों को कुचलते हैं,
अपनों को ठुकरा कर परायों को पूजते हैं!
आँसू ला गई आँखों में ये हक़ीक़त,
मुस्कुराहट के लिए क्या अब
सपनों का सहारा लेना पड़ेगा?
जिंदगी बहुत छोटी है।
नशा कर ज़िंदगी जीने का,
नशा चढ़ा तो अपनों को प्रोत्साहित करने का,
नशा छोड तो लोगों की वाहवाही लेने का!
तुझे सत्ता चाहिए, घर पे राज करना है,
तो शौक़ से कर, किसने रोका?
पर अपनों को दबाकर नहीं,
बल्कि अपनों के दिलों पे राज करके।
फिर देख तू,
इस ज़मी पे जन्नत पायेगा,
अपनों को पाके निखर जायेगा तू।
अपनों को पाके सवर जायेगा तू।
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ लिखा है दीदी आपने💕🤗
Bhut hi accha likha h
Thank you soo much dear from the bottom of my heart..☺