गुरु का महत्व- संस्कृत श्लोक (पहला भाग)

(1)
गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते ।
अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥

 भावार्थ :

‘गु’कार याने अंधकार, और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।

(2)
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च ।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्।।

 भावार्थ :

बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।

मैंने आज के शुभ अवसर पर गुरु पूर्णिमा के लिए तीन भाग लिखे हैं। पहले भाग में, मैंने संस्कृत श्लोकों के माध्यम से गुरु का महत्व दर्शाया है।

दूसरे भाग में, मैंने गुरु के बारे में एक अलग दृष्टिकोण का उल्लेख किया है।

तीसरे भाग में, मैंने भगवान दत्तात्रेय के २४ गुरुओं के बारे में जानकारी दी है।

मुझे उम्मीद है कि आप सभी को ये लेख पसंद आएंगे।

शुभ गुरु पूर्णिमा!🙏

11 thoughts on “गुरु का महत्व- संस्कृत श्लोक (पहला भाग)

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  1. यह तो गुरूगीता का वचन जो भोले बाबा ने माँ पार्वती के बार बार पूछने पे कहा था। गुरू कि महिमा स्वयं महादेव जी ने गाई है। जो शिव है वो गुरू है और जो गुरू है वही शिव है।
    गुकारश्च गुणातीतो रूपातीतो रुकारकः |
    गुणरूपविहीनत्वात् गुरुरित्यभिधीयते |
    गुरू पूर्णिमा कि हार्दिक बधाई हो दीदी आपको🌸😊

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