प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
भावार्थ :
प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है ।
मैंने इस स्तोत्र से प्रेरणा लेकर एक रचना लिखी है। रचना में मैंने कहा है कि हम कैसे अपने बुरे दौर में भी सकारात्मक और गतिशील रह सकते हैं और कुछ लोगों से मिले बुरे अनुभव को भी एक आकार दे सकते हैं। जैसे कि स्तोत्र में कहा है कि हर कोई गुरु समान है, जिससे हमने कुछ सीखा है।
रचना: नया नज़रिया!
मुझे रास्ते से भटकाने के लिए,
तुमने मेरा रास्ता, कांटों से भर दिया।
पर मैंने तो कांटों पर
चलना सीख लिया।
मुझे परेशान करने के लिए,
तुमने मेरे साथ, बुरा बर्ताव किया।
पर मैंने तो धैर्य और सहनशीलता का
गुण सीख लिया।
मुझे विफल करने के लिए,
तुमने योजनाएं बनाना शुरू किया।
पर मैंने तो मेरा मनोबल और इरादा दोनों को
और मज़बूत करना सीख लिया।
रास्ते के पत्थर को सफलता की सीढ़ी
बनाने की कला जो मुझे आ गई,
उस की जड़ में तुम्हारा व्यवहार छिपा है।
यह “तू” कोई व्यक्ति हो सकता है, बुरा समय या तो कोई परिस्थिति भी हो सकती हैं। हम सब को एसे अनुभव से पसार होना ही पड़ता है, पर देखा जाए तो एसी जटिल परिस्थितियां ही हमें और भी बेहतर इंसान बनाती है, हमें सफल बनाती है, पर यह तभी हो सकता है जब हम हार को स्वीकार कर बैठें न रहें और अपना मनोबल तूटने न दें और अपने कार्य को छोड़ न दें।
हमें हमेशा एसी परिस्थिति या तो व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता की भावना रखनी चाहिेए क्योंकि ये गुरु समान ही है, जिसने हमें सीखाया, जिनसे हमें कुछ सीखने की प्रेरणा मिली।
जो काँटों में भी फुल खिला दे वो सदगुरु पूर्ण होते हैं इसलिए उनकी पूर्णिमा मनायी जाती है। दीक्षा के दिन से वे शिष्य के अंतःकरण में निवास करते हैं। वे एक ऐसे माली हैं जो जीवनरूपी बगिया को हरा-भरा एवं महकता कर देते हैं। वे भेद में अभेद के दर्शन करने की युक्ति सिखाते हैं।
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गुरु बिन ज्ञान नहीं। बिलकुल सही कहा।
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Ohh that’s amazing! It is always true..our sufferings are our blessings..it is all about our perspective!
I haven’t read another book..but surely start soon!
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