#पुस्तक अध्ययन #अज्ञान #आंतरिक विकास

“जितना हम किसी पुस्तक का अध्ययन करते हैं, उतना ही हमें अपने अज्ञान का आभास होता हैं।”

– स्वामी विवेकानंद

हमें अपने अज्ञान का आभास होते ही उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। जो भी ज्ञान की बातें हो, उसे अमल में लाना चाहिए। यही आंतरिक विकास का मार्ग है।

पढें हुए का अमल करने से ही, हम ज्ञान की दिशा में बढ़ पाएंगे। यदि हम जो भी पढ़ते हैं, कोई भी ग्रंथ या ज्ञान की बातें, किसी भी क्षेत्र के बारे में जानकारी इत्यादि। इसे अमल में नहीं लाते, तो हमारा पढ़ना बेकार है, यह सिर्फ समय की बर्बादी है।

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