प्रेम की गरिमा

प्रेम करती हूँ तुम से,
इसलिए मेरी हाँ में हाँ मिलाना,  
एसी ज़बरदस्ती नहीं करूंगी।
सिर्फ स्व-केन्द्रित बनना ही, प्रेम नहीं।

प्रेम करती हूँ मेरे अपनों से,
इसलिए मेरी इच्छा पूर्ति ही करते रहो,
एसी ज़बरदस्ती नहीं करूंगी।
सिर्फ स्व-केन्द्रित बनना ही, प्रेम नहीं।

प्रेम करती हूँ सब को,
इसलिए मुक्तता देती हूँ सब को,
क्योंकि प्रेम को बांधा नहीं जाता।

प्रेम करती हूँ सब को,
इसलिए अपनी ही मनमानी नहीं करती,
क्योंकि प्रेम में ज़बरदस्ती नहीं की जाती

प्रेम नाम ही है मुक्तता का,
प्रेम नाम नहीं बंधनों का,
इसी में छिपी है प्रेम की गरिमा।

2 thoughts on “प्रेम की गरिमा

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