चिंता का पहाड

चिंता के विषय पर
संस्कृत सुभाषित:

चिता चिंता समानाडस्ति बिंदुमात्र विशेषत:।
सजीवं दहते चिंता निर्जीवं दहते चिता।।
अर्थात्
चिता और चिंता समान कही गयी है पर उसमें सिर्फ एक बिंदु का फर्क है, चिता तो मरे हुए इंसान को (निर्जीव) जलाती है पर चिंता जीवित इंसान को ही जलाती है।

कबीर दोहा:
(१)
चिंता से चतुराई घटे,
दुःख से घटे शरीर।
लोभ किये धन घटे,
कह गये दास कबीर।।
अर्थात्
कबीर जी कहते है कि चिंता करने से चतुराई घटती है, दुःख का बहुत अनुभव होता है तो शरीर पर असर होती है और लालच करने से धन ज्यादा नही मिलता।

(२)
चिंता एसी डाकिनी, काट करेजा खाए।
वैध बिचारा क्या करे, कहा तक दवा खवाय।।
अर्थात्
चिंता सबसे ख़तरनाक है, जो कलेजे में दर्द उठाती है, इस दर्द की दवा कोई चिकित्सक भी नहीं दे सकता।

6 thoughts on “चिंता का पहाड

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  1. चिंता से चतुराई घटे
    घटे रूप और ज्ञान
    चिंता बड़ी अभागिनी
    चिंता चिता समान

    मेरो चिंतयो होत नहीं
    हरि को चिंतयो होय
    हरि चिंतयो हरि करे
    मैं रहुं निश्चिंत

    BTW, Thanks for sharing this wonderful Sanskrit Words🙏💐😊

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