हनुमानंजनीसूनुवायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोडमित विक्रम:।।१।।
उदधिक्रमणश्चैव सीता शोक विनाशन:।
लक्ष्मण प्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।२।।
एवं द्वादशनामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।३।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।
राजद्बारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।४।।
भावार्थ:-
१ और २ का भावार्थ:
हनुमानजी के १२ नामो का वर्णन किया है।
मैंने हनुमानजी के १२ नामो का पिछले लेख में सविस्तार वर्णन किया है।
હનુમાન ભગવાનના ૧૨ નામ અને અર્થ ( हनुमान भगवान के १२ नाम और अर्थ)
३ और ४ का भावार्थ:
यह १२ नामो के स्मरण से मिलने वाला फल :-
यह १२ नाम हनुमानजी के गुणों की प्रकृति के है। हनुमानजी के स्तोत्र में यह छोटी सी स्तुति बहुत महत्वपूर्ण है। जो कोई रात को सोते समय या सुबह उठकर नित्य यह स्तुति करता है या यात्रा शुरू करने से पहले, यह स्तुति करता है, उसका सब भय दूर हो जाता है। जो व्यक्ति युद्ध के मैदान में, राजा के दरबार में या भयानक खतरे में फंसा हो, जहां कही भी फस गया हो, उसे कोई भी भय नही रहता है। इसलिए इस स्तुति को “संकट मोचनी” भी कहा जाता है।
Jai Hanuman ji.
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